ओ! रस्ता पे जाणिया, कर म्हासूं थोड़ी बात

बैठ अठै बिसराम कर, म्हारै साथ बितालै रात

सुण डूंगर की बात हंस्यो, मनमौजी मेहमान अर

कह्यो—

बावळा डूंगर कर तूं, खुद अपणी पिछाण

मैं हर्या-भर्या बागां में रैणियो, तूं बाठां रो ढेर

जाण भी दै आगै म्हनैं, होवण लागी देर

डूंगर बोल्यो सुण बटोही—

म्हारा रूंखां री तूं पुकार

चौमासा में हर्या-भर्या ही, थारो करैला अै सत्कार

डूंगर! चुपचाप खड़यो रे, सूखां-रूखां साथ

मत म्हांनै तूं रोक, म्हासूं मत कर झूठी बात

जा रे जा-जा बटोही, पण तूं पाछो आवैलो

मेरा हिया रा रूंखां रै, बैठ तळै सुस्तावैलो

थोड़ा दिनां रै बाद बटोही, फेर उठीनै आयो

गळो सूखग्यो बिन पाणी, मरतो मरै तिसायो

तड़पण लाग्यो तिस को मारयो, रुकग्यो डूंगर देख

पाणी री धार दिखी जद, डूंगर बहती अेक

पी पाणी पिछाणग्यो, डूंगर री आवाज

समझ्यो बटोही-

आज नहीं तो काल पड़ैलो, अेक-दूजां सूं काज।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : सुनीता बिश्नोलिया ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ
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