किसूं व्याकरण अवर भाखा अनै पराकत,

संसकित तणै क्यूं फिरै सागै।

लाख रा ठाकरां तणां माथा लुळै,

आखरां तणां गजबोह आगै॥1॥

नायका पाठड़ा हूंत आवै नहीं,

लायका छरां री अतर लाहा।

कोइक विरदायकां मांय जाणै सकव,

वायकां सायकां तणी वाहा॥2॥

तिकण रौ सीखियां भेद नावै तुरत,

सुरत पण पेखियां पड़ै सांसै।

विधक धण जाण रा माण छांडे वहै,

वाण रा जहूरां तणै वांसै॥3॥

जोगमाया तणी भगति कीधां जुड़ै,

प्रथी सिर मुड़ै नह विकट पैंडा।

सगत रा पुत्र जाणै कोइक वचन-सिध,

उगत री जुगत रा घाट ऐंडा॥4॥

स्रोत
  • पोथी : प्राचीन राजस्थानी काव्य ,
  • सिरजक : नवलदान लाळस ,
  • संपादक : मनोहर शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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