दिलड़ा समझ रे सगळो जग दाखे,

पछे घणो पछतासी।

पुरख जनम तूं कद पामेला,

गुण कद हर रा गासी॥1॥

मात पिता दोलत बंधव मद,

सुत तिरिया देख सँधाणो।

माया रा आडम्बर मांहे,

बंदा केम बँधाणो॥2॥

समझे क्यूं अजे समझावूं,

भूल मती रे भाया।

दोड़ै ऊमर चटका देती,

छित ज्यूं बादळ छाया॥3॥

सोवै खाय करै नहं सुकत,

खोवै देह खलीता।

प्रीते करे समरो सीतापत,

जके जमारो जीता॥4॥

स्रोत
  • पोथी : प्राचीन राजस्थानी काव्य ,
  • सिरजक : ओपो आढो ,
  • संपादक : मनोहर शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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