1
थकगा नैण उडिकतां, बादल आज्या रै।
कि बैरी आज्या रै॥
बिकगा झूमर टेवटा बाजूबन्द री लूम।
उजड़्या डांगर टापरा बाण्यां कै भेली टूम॥
काल पड़ैलो जोरको भैम जगन नं खाय।
बिन बरस्या बादला ईमान भागतो जाय॥
गरज हठिला जोर सूं अम्बर मं छाज्या रै।
कि बैरी आज्या रै॥

2

फीको पड़गो तावड़ो धूल चढी गिगनार।
तड़फैं जीव उजाड़ रा जोड़ां सूखी गार॥
रोवै पिरजा बापड़ी आंख्यां आंसू जांय।
बिन बरस्यां बादला के बालू माटी खाय॥
मरू कै पाखी मोरियां नं पाणी प्याज्या रै।
कि बादल आज्या रै॥

3

टीबा सुक्या फोगला घणी तिसाई रेत।
धरती तो हो गई दुहागण राह्य बांझड़ा खेत॥
मोरां रा प्यारा बादला लख चातक रो हेत।
खीर लापसी करूं कड़ाई चेत बादला चेत॥
या धरती रो नास करण री सोगंद खाज्या रै।
कि बैरी आज्या रै॥

स्रोत
  • पोथी : मोती-मणिया ,
  • सिरजक : महावीर प्रसाद शर्मा जोशी ,
  • संपादक : कृष्ण बिहारी सहल ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन
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