गीत भीजग्या नये रंग में, मनड़ो चंग बजावै।

भजबळ सूं ही जिवड़ो मुळकै, धरती धन निपजावै॥

कोई धन-धरती बँटवावै,

छियाँ छोड़ के आज तावड़ो,

पगाँ उभाणो आवै!!

बीज मुळकसी, कूँपळ गासी, खड़्या ठूंठ अब रोसी।

मुड़-मुड़ सोचूं एक बात पण, धरती नै सुख होसी॥

करसो हळ सूं हेत लगावै,

छियाँ छोड़ के आज तावड़ो,

पगाँ उभाणो आवै!!

हीणी बात करें अलवाड़ा, निकमा ठाला खावै।

इसै देस में नई क्रांति क्यूं धीमी-धीमी आवै?

म्हानै सोच फिकर हो ज्यावै,

छियाँ छोड़ के आज तावड़ो,

पगाँ उभाणो आवै!!

कुराफात भी थोड़ा दिन तक, आँख मीचणी खेली।

बज्जर छाती, भर्यो पसीनो, करम कुदाळी लेली॥

हेलो मार मजूरी खावै,

छियाँ छोड़ के आज तावड़ो,

पगाँ उभाणो आवै!!

भीतर बैठी नई जोत ने फूंक मती बुझ जासी।

आस ऊजळी मारग जोवै, पीळो सूरज आसी॥

झिल-मिल किरणां हँस-हँस गावै

छियाँ छोड़ के आज तावड़ो,

पग उभाणो आवै!!

पड़्या धींगड़ा खुल्ला खावै, चुगल चिलम में हाँसे।

छण छण धुँओं मिलावै साफी, पीले वो ही खाँसे॥

बचके नयो मिनख पण जावै,

छियाँ छोड़ के आज तावड़ो,

पगाँ उभाणो आवै!!

आगळ खुली किंवाड़ उघाड़ा, भीतर पड़ग्या धाड़ा।

ब्याई फाटै, वो पग रोवै, हाँसै पण अलवाड़ा॥

पीड़ा आँसू भर-भर ल्यावै,

छियाँ छोड़ के आज तावड़ो,

पगाँ उभाणो आवै!!

टँट भिड़ावै लँगड़ी चालां, सीधो पग बढ़ जावै।

हिम्मत बाँधै, हूँस मोकळी, निमळो नीचो आवै॥

जुलमी जोर गुचळकी खावै,

छियाँ छोड़ के आज तावड़ो,

पगाँ उभाणो आवै!!

माटी बिछगी, दियो राखद्यो, नीचै धान धराद्यो।

घी में भीजी जुग बाती नै, जन-मन माँय जगाद्यो॥

कोई आँगण काँच ढुळावै,

छियाँ छोड़ के आज तावड़ो,

पगाँ उभाणो आवै!!

उजमण करै गरीबी धन को, आस सास पग लागी।

धरती पाँचो माँडण लागी, पीड़ देस री भागी॥

ऊजळ जळ पीवै, फळ खावै,

छियाँ छोड़ के आज तावड़ो,

पगाँ उभाणो आवै!!

कोट कंगूरा चढ़ी जिन्दगी, झळ दीखै मतवाळी।

धन-लिछमी अब भीखो काटै, मिणत हाथ ली ताळी॥

कोई थर-थर दियो जगावै,

अँधकार नै छोड़ चानणो,

पगाँ उभाणो आवै!!

स्रोत
  • पोथी : सैनाणी री जागी जोत ,
  • सिरजक : मेघराज मुकुल ,
  • प्रकाशक : अनुपम प्रकाशन जयपुर
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