सैनाण पड़्यो हथळेवै रो, हिंगळू माथै में दमकै ही।
रखड़ी फेरां री आण लियां, गमगमाट करती गमकै ही॥
काँगण-डोरो पोंचै मांही, चुड़लो सुहाग ले सुघड़ाई।
चुँदड़ी रो रंग न छूट्यो हो, था बँध्या रह्या बिछिया थांई॥
अरमाण सुहाग-रात रा ले, छत्राणी महलां में आई।
ठमकै सूं ठुमक-ठुमक छम-छम, चढगी महलां में सरमाई॥
पोढण री अमर लियां आसा, प्यासा नैणां में लियां हेत।
चूंडावत गंठजोड़ो खोल्यो, तन-मन री सुध-बध अमिट मेट।
पण बाज रही थी सहनाई, महलां में गूंज्यो संखनाद।
अधरां पर अधर झुंक्या रहग्या, सरदार भूलग्यो आलिङ्गन॥
रजपूती मुख पीळो पड़ग्यो, बोल्यो- “रण में नीं जाऊँला
राणी! थारी पलकां सहळा, हूं गीत हेत रा गाऊँ ला॥
आ बात उचित है कीं हद तक, ब्या में भी चैन न ले पाऊं?
मेवाड़ भलइं क्यूं हो न दास, हूं रण में लड़न नहीं जाऊं।
बोली छत्राणी, नाथ! आज थे मती पधारो रण मांही।
तलवार बताद्यो, हूं जासूं, थे चुड़ी पैर रैवो घर मांही॥
कह कूद पड़ी झट सेज त्याग, नैणां में अगणी भभक उठी।
चंडी रो रूप बण्यो छिण में, विकराळ भवानी झमक उठी॥
बोली, “आ बात जचै कोनी, पति नै चाहूं मैं मरवाणो।
पति म्हारो कोमळ कूंपळ सो, फूलां सो छिण में मुरझाणो॥
पैल्यां कीं समझ नहीं आई, पागल सो बैठ्यो रह्यो मूरख।
पण बात समझ में जद आई, हो गया नैण इकदम्म सुरख॥
बिजळी सी चाली रग-रग में, कव्वच बांध्यां उतर्यो पोड़ी।
हुंङ्कार बम-बम महादेव ठक-ठक-ठक-ठपक” बढी घोड़ी॥
पैल्यां राणी नै हरख हुयो, पण फेर ज्यान सी निकळ गई।
काळजो मुंह कानी आयो, डब-डब आंखड़ियां पथर गई।
उन्मत सी भाजी महलां में, फिर बीच झरोखां टिक्या नैण।
बारै दरवाजै चूँडावत, उच्चार रह्यो थो वीर-बैण॥
आंख्या सूं आंख मिली छिण में, सरदार वीरता बिसराई।
सेवक नै भेज रावळै में, अन्तिम सैनाणी मंगवाई।
सेवक पहुंच्यो अन्तःपुर में, राणी सूं मांगी सैनाणी।
राणी सहमी, फिर गरज उठी, बोली, कहदे, मरगी राणी!!
फिर कह्यो, ठहर, ले सैनाणी, कह झपट खड़ग खींच्यो भारी,
सिर कट्यो हाथ में उछल पड़यो, सेवक भाज्यो ले सैणाणी॥
सरदार ऊछळ्यो घोड़ी पर, बोल्यो, ल्या-ल्या-ल्या सैनाणी।
फिर देख्यो कट्यो सीस हँसतो, बोल्यो, “राणी! मेरी राणी!!
तू सुभ सैनाणी दी राणी! है धन्य-धन्य तू छत्राणी!
हूँ भूल चुक्यो हो रण-पथ नै, तू भलो पाठ दीन्यो राणी!!“
कह एड लगाई घोड़ी कै, रण बीच भयङ्कर हुयो नाद।
केहरी करी गर्जन भारी, अरिगण रै ऊपर पड़ी गाज॥
फिर कट्यो सीस गळ में धार्यो, बेणी री दो लट बांट बळी।
उन्मत्त बण्यो पुणि करद धार, असपत्त फौज ने खूब दळी॥
सरदार विजय पाई रण में, सारी जगती बोली, जय हो!!
रणदेवी हाड़ी राणी री, माँ-भारत री जय हो! जय हो!!