कुजोगी हैवाई छोडो, भासा मायड़ बोलो रै।

परभासा रै भूतां नैं, दूधै रो तेज दिखाद्यो रै॥

भासा मायड़ बोलो रै, राजस्थानी बोलो रै।

छाछ लेवण नैं आई तो घर री धिराणी बिणगी रै।

रोटी-रूजगार खोस्या, तो दफतर्यां में छागी रै॥

भासा मायड़ बोलो रै, राजस्थानी बोलो रै।

छाती माथै मूंग दळती, संस्कृति रौ कर्यो कबाड़ो रै।

यारो बाळण बाळौ रै, यारै लांपौ लगाद्यो रै॥

भासा मायड़ बोलो रै, राजस्थानी बोलो रै।

फरजी डिगर्यां ले आया धाड़वीं, नौकर्यां कब्जाई रै।

यांरौ नकु भांगो रै, यांनै मारग बतावो रै॥

भासा मायड़ बोलो रै, राजस्थानी बोलो रै।

राजस्थानी नैं भख तो, हुयगी राती-माती रै।

यांनै थोड़ी छांगो रै, यांरी कड़तू तोड़ो रै॥

भासा मायड़ बोलो रै, राजस्थानी बोलो रै।

खोल उणींदी आंखड़ल्यां, देद्यो नाहर सी दकाळ रै।

धरती धूजै आभौ गरजै, धूजै भारत री सरकार रै॥

भासा मायड़ बोलो रै, राजस्थानी बोलो रै।

छांटा-छिड़का सूं नीं बूझैला, मान्यता री आग रै।

छात्र-छत्रपती जागो रै, लूंठा सेठां जागो रै॥

भासा मायड़ बोलो रै, राजस्थानी बोलो रै।

बीकां-जोधां-मेड़तियां, सेखावतियां- सिसोदियां, जागो रे।

थै क्यूं लारै रेवौ गोदारा, मीणां भील-पड़िहारा रै॥

भासा मायड़ बोलो रै, राजस्थानी बोलो रै।

जात-पांत रै टंटे नैं छोडो, ओकमेक भरो राजस्थानी हुंकारो रै।

आंटी-नोळी काठी करो, माथां हठ लेय हु ज्यावौ त्यार रै॥

भासा मायड़ बोलो रै, राजस्थानी बोलो रै।

साठ बरसां सूं उडीकरैया, कै भारत रा भाग्यविधाता तूढै रै।

सत री सगळी सींवा टूटगी, तो सत लेवण नैं अड़गी रै॥

भासा मायड़ बोलो रै, राजस्थानी बोलो रै।

दूंनो-म्यांनौ आपां नैं क्यांरौ, करणी रौ फळ भोगै रै।

इण री घोर खोलण सारू, बजावो राजस्थानी घूंसो रै॥

भासा मायड़ बोलो रै, राजस्थानी बोलो रै।

स्रोत
  • पोथी : थार सप्तक 5 ,
  • सिरजक : विनोद सारस्वत
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