बार-बार वंदना में धूप, दीप, आरती

पूत री पुकार सुण, पधारो मात भारती

पुष्पमाळ थाळ में मोत्यां सजा’र लायो हूं

कूं-कूं, मोळी संग मंगळीक भी चढायो हूं

दरसणां उडीक मांही आंखड़्यां निहारती!

आपरी आसीस मांगै है कवि री लेखणी

भावां सूं हियो भरीजै यूं करो मेहर घणी

सबदां रो भंडार मांगै है जुबां उचारती!

छंद रो विधान, गीत गाण भी दिराओ मां

ईं धरा पे काव्य नैं माण भी दिराओ मां

कंठ में विराजो म्हारी आतमा पुकारती!

आप ही उजास देणी, अंधकार लेवणी

दास नैं दिराओ दान, विद्या दान देवणी

बारणै खड़ी है दुनिया आज कर पसारती!

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : प्रहलाद सिंह झोरड़ा ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : मरुभूमि शोध संस्थान (राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति, श्रीडूंगरगढ़)
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