जगत रा देख उजब दरसाव
पड़्या हिवड़ै में ऊंडा घाव
साथ जीवण रौ सुण नै कौल
छुनक छुन स्रिस्टी जद नाची;
समंदर रौ हिवड़ौ हुळसाय
हुळकतै नैण नीर बांची।
डूबग्या मन रा सैंग उमाव
अपूठी चाली जीवण नाव।
निकळता रसना सूं वे बोल,
बिकाणौ अपणापौ अणमोल;
जगत रा भारी, हळका भार
तुलै कद नेह हियै रै तोल।
आंकड़ां में उळझ्योड़ौ भाव
चढाई सूं पैला उतराव।
गमायौ जीवण रौ सैं कोड,
जगत री कर नै होडाहोड
अलेखूं आंगणियां में जोय
मानतापूरण लीकां छोड।
तण्योड़ौ क्यूं लागै पोमाव
आज क्यूं ऊमण-दूमण चाव?