मत कर खींचाताण मानवी, अब तो तज अभिमान मानवी

माथा ऊपर काळ फिरै रे, बणियो क्यूं अणजाण मानवी

दया धरम सूं प्रीत पाळ ले, बैर कर्यां है हाण मानवी

ऊंच-नीच रो भेद त्याग दै, सबको इस समसाण मानवी

दुख रो संगी कोय नहीं है, अब तो करो पिछाण मानवी

दुख में सगळा रैसी, सुख में है अगवाण मानवी

कड़वो मत ना बोल बोल रे, बस में राख जबाण मानवी

घाव लगेड़ो भर जावैलो, खोटो रसना बाण मानवी

सूकरमां सूं साख बांधलै, जब तक तन में प्राण मानवी

पड़्यो-पड़्यो पिछतावैलो, जद हट जासी हांण मानवी

मन मांहि ‘संतोष’ धारलै, बधसी नित रो माण मानवी

मत कर खींचाताण मानवी, अब तो तज अभिमान मानवी

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : संतोष शेखावत बरड़वा ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : मरुभूमि शोध संस्थान (राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति, श्रीडूंगरगढ़)
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