कांई फिरे इतरी इतराणी

वना काम री कियां रिसाणी

इबके म्हारे गाम गोरड़ी।

तीजां रमजा ए।

बादळी ठम जाए।

थारी पल-पल जोई बाट

पामणी! ठम जा

समन्दर सूं इमरत रस ल्याई

कठे-कठे गागर ढुलकाई

कुक कुण ने दे दिया संदेसा?

कुण कुण री पाती ले आई?

बाग बगीचा कितरा सींच्या?

डूंगर किस्या बाथ में भींच्या?

कितरा खेत धपाया भोजी

कुण कुण ने मोतीड़ा बींछ्या?

मन री करलां वात नाम तो नीची नम जा

बादली! ठम जा ए।

थारे कई भराणी रांट बा ळी ठम जा ए।

पणधट री पणियार बुलावे

मोटा घर री नार बुलावे

थारा खातर गाम पटेलण

भाटे—भाटे देव पुजावे

सावण रा मेळा लगवाजा

आंबा पे हीदो बधवाजा

हर्‌या खेत री पाळी माथे

गोठ्यां री गोठां करवा जा

छोड़ उतावळ साता सूं दो दन तो जम जा

बादली ठम जा

थारे दन दूणो व्हे ठाठ लाड़ली! ठम जा ए‌॥

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत मई 1983 ,
  • सिरजक : विश्वेश्वर शर्मा ,
  • संपादक : नरपतसिंह सोढ़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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