कदी उगतां हीं म्हांकी सरस्यूँ बळगी

कदी फूलां आई सोयाबीन गळगी

असी काईं खेती बाड़ी बैरण जीव तळगी

गोडा गोडा गारा म्ह जी गरड़ो लगायो

साता सूँ घर भर नै कदी गासड़ो न्ह खायो

फूल सी पगथळ्यॉ म्ह लूलर्‌याँसी पड़गी

गोरी गोरी आँगळयाँ छी खारवा सूं सड़गी

छानै छानै नुई लाडी फोड़री फसकड़ा

दोराणी जठ्‌याणी सासू आगै रोवै दुखड़ा

बींट्यां गुमगी वांकी मेंहदी घुळगी

जद सूँ हळ कुळी भूल्या साळ सूनी होई

डीडाड़ा पाड़ै छै खेत बाड़ी घणी रोई

तीन बीघा टूकड़ी भी दूसरा कै सारै

गाँव को पटैल प्हली आपणी सुधारे

पडौसी का कूड हँसै म्हारे आवे रोवणी

कदी भी बगत पै न्ह हो पाई बोवणी,

चाँदी सी लसण धासां दे दे सळगी

घोषणां का बादळा तो रोज घणा गरजै

कागदां म्ह उमड़ै घुमड़ै फाइलां म्ह बरसै

दिल्ली नै नचोड़ घाल्या जयपुर म्ह अटक ग्या

गेला पै लगाओ कोई बादळा भटक् ग्या

खेतां म्ह बरसणा छा म्हलां पै बरसर्‌या,

अफसरां का प्याला म्ह सूँ नकटा छलकर्‌या

नेता जी की सात पीढ्यां यूँ ही पळगी

खेती बाड़ी छोड कै जे सहर म्ह बसै छै

काराँ म्ह घूमै छै म्हाका हाल पै हँसै छै

बड़बोली लुगायाँ वांकी घणी इतरावै

सूना की कणकती सारा गाँव नै दखावे

गाँवड़ा की बायरां को रुप रंग सारो

सीमळा को फूल यांको मनख जमारो

गारा अर गोबर म्ह जवानी ढळगी

स्रोत
  • सिरजक : राम नारायण मीणा ‘हलधर’ ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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