देख-देख आंधळी, गिगन घिर आई
मत जांण पांगळी, समै की पुरवाई
पुरवाई देवैली, पहाड़ नै उछाळ
पगड़ी संभाळ भाई, पगड़ी संभाळ।
पोळी-पीळी पागड़ी रा, ढीला कींया पेच ?
पूज जन-बळ चाहे-भूलज्या गणेस
बेच चाहे अन-धन, धांन न हमेस
मारवाड़ी मांन नै, बजार में न बेच
आंन-मांन-स्यांन नै, बजार में न बेच
लुक-लुक टांणसी तौ, पड़सी कुबांण
झुक झुक चालसी तौ, फूटसी कपाळ
देख-देख आंधळी, गिगन घिर आई...।
बांध तौ ली धोती पण, ढीळी रहगी लांग
ढाक लीन्ही गादी तौ, उघाड़ दीन्ही टांग
डोळ तौ बखांण सी, भरै लौ जद सांग
समै को सिपाही स्यांणा, घणौ बळवांन
काळी-पीळी बादळी, घटावां रौ घिराव
कुण जांणै जद-कद, फोड़ दै पताळ
देख-देख आंधळी, गिगन घिर आई....।
कमर कस्योड़ी हौ तौ, कुण बिदकाय
गांव बैठ्या गादड़ा ही, मांमौजी कुहाय
मूंछ्यां की मरोड़ स्यांणां, दीन्ही छिटकाय
धन-मद-लोभ में, भंवर भरमाय
भासा-भेख-देस गया, बडकां रै गैल
कंवर बिलायती-विलायां लीन्ही पाळ
देख देखआंधळी, गिगन घिर आई....।
धरती रा कण-कण, बणग्या बतूळ
सुख सपनां रा तू - हिंडौळा मत झूल
म्हैल रा मिनख मत, झूपड़ी नै भूल
आंम कद खावेलो जे बोवेलो बबूळ
फुलड़ां री सेज मत रीझ अणजांण
फूल सागै सूळ भी तो निपजै सुडाळ
देख-देख आंधळी, गिगन घिर आई....।
धन रौ धणेप कांम कोनी आवै यार
आबरू सैं बेसी कोनी-प्यारौ कळदार
न्याव तौ पुराणी कोनी चालै मझधार
बूकियां रै पांण ही संभाळ पतवार
नड-नाळियां- समद खावै है उफांण
टिक न सकैली बेली, धूळ की दीवाळ
देख-देख आंधळी, गिगन घिर आई.... ।
माटी री मरोड़ देख, गोडी मत ढाळ
आगे चाहे सागै, आज बांध लै रूमाल
गळै मिल भूख कै मजूरिया रूखाळ
काम-धाम मिल म्हैल माळिया संभाळ
साच की कमांण चाहे कान तांई तांण
स्रम समता री पण गायां जा धमाळ
देख-देख आंधळी, गिगन घिर आई.... |