सुसराजी आगै वीनऊं
म्हानै भावै ओ सुसरोजी हरियो रे मतीरो
लाल मतीरो गुलाब गिरी रौ
भावै औ म्हानै सुसराजी हरियौ रे मतीरौ
सळ-सळ करतो सीरो थे खावौ
म्हारी बहु कांईं खास्यौ ओ सरद मतीरौ
जेठजी आगै अरज बहु री
म्हानै भावै औ जेठसा हरियो रे मतिरो
लाल मतीरौ गुलाब गीरी रौ
भावै ओ म्हानै जेठसा हरियौ रे मतीरौ
कच-कच करतो घेवर थे खावौ
कुळ बहु म्हारी कांई खास्यौ ओ सरद मतीरौ
मारूजी रै आगै अरज गौरी री
कोई भावै ओ जोड़ी रा ढोला हरियौ रे मतीरौ
चढिया मारूजी ढळती ओ रात
सूरज ऊगिया अगुणा खेतड़ म्हारा राज
लायौ जोड़ी रो ढोलो बोरा भराय
भावै जितरा खावौ म्हारी गौरी धण हरिया मतीरा
थे जुग जीवौ म्हारा वसदेवजी रा धीव
थे म्हारी रळी रे पुराई जी म्हारा राज
थे जुग जीवौ बड़ सजना रा भाई
थे तौ म्हारौ वंस बधायौ जी म्हारा राज।

मतीरे की भावन

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी साहित्य में पर्यावरण चेतना ,
  • संपादक : डॉ. हनुमान गालवा ,
  • प्रकाशक : बुक्स ट्रेजर, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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