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वहता रहै विमांण
बांकीदास आशिया
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वहता
रहै
विमांण,
ले
तट
सूं
वैकुंठ
लग्ग।
ते
इम
किरोड़ी
तन,
अंतक
लोक
उजाळियौ॥
स्रोत
पोथी
: गंगालहरी
,
सिरजक
: बांकीदास आसिया
,
प्रकाशक
: राजस्थान राज्य प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर (राज.)