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कान कुचरण्यां क्यूं करै
ओम बटाऊ
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कान
कुचरण्यां
क्यूं
करै,
मत
मारग
खोदै
खाळ।
दिन
फिरेला
वार
करेला,
औ
टेम
करै
नहीं
टाळ॥
स्रोत
सिरजक
: ओम बटाऊ
,
प्रकाशक
: कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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