समै पल्लटै सूरमा, हिम्मत नाहक हार।

हूंसो रखणो हांतरो, पड़ जावेला पार॥

सुख अर दुःख है सीरखा, धीरज मनमा धार।

सत रो मारग सीखले, पड़ जावेला पार॥

रीत एक सी ना रहै, समै सरीखो सार।

रूखी रो ना रिसणो, पड़ जावेला पार॥

ना माया ना मान में , सत ना है सत्कार।

आछो अवसर आवसी, पड़ जावेला पार॥

चाटे मुख जो चोगुणो, दुणी मिले दुत्कार।

चापलूसी बण चपल, पड़ जावेला पार॥

राम नाम ने राखले, करमा री कार।

एक भरोसो ईशरो, पड़ जावेला पार॥

जो सुख चावे जीवरो, झूठ दूर झटकार।

करो नही कूड़ा करम, पड़ जावेला पार॥

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : शंकर दान चारण ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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