जाड़ो पड़र्यो जोर को, पूस माह के मांय।
ओढ़ रजाई गोदळा, लोग छिप्या घर जाय॥
सूर देवजी रूस ग्या, ठंडी चालै ब्यार।
बूढ़ा बाळक दुबक ग्या, पुआ पापड़ी खार॥
खेतां ऊबी गोरड़ी, पिव नै रही निहार।
छाछ राबड़ी प्रेम की, कर झट सूं तैयार॥
लगी जोर सूं धूजणी, पूस माह कै मांय।
होरी तापै तापड़ो, ठंडो बासी खाय॥
सूरज देखो जा छिप्यो, किरण लाड़ली संग।
लोगदणी बेचैन छै, कांपै वांका अंग॥
कठी न लागै जीवड़ौ, घणी जोर को सीत।
अठी ब्याव मंडप सज्यां, कस्या नभावां रीत॥
जाड़ौ पड़र्यो जोर सूं, जीव घणौ दुख पाय।
ढांडा ढोर कांप उठ्या, काईं करां उपाय॥
जम्यो कोहड़ो जोर सूं सूझै कोनी कांय।
पाणी की बूंदा जमी लोग दुब्या घर मांय॥
ऊनी मफलर डाल ल्यो, सर पै ऊनी टोप।
छानमून सब लोग छै, जाडा को परकोप॥
आँखमचौळी खेलर्यो, देखो सूरज आज।
हाथ पांव में धूजणी काईं न सूझै काज॥
हाड़ कपाती ठंड छै, दांत घणा किटकाय।
ओढ्या कामळ गूदड़ा, कांईं करा उपाय॥
जाड़ो छै जी जोर को, मूंडै कढ़ र्यी भाप।
कड़कड़ाता जाड़ा में, सब जण छावै ताप॥
स्याळो पड़ र्यो जोर सूं, जाणै कर्फ्यू आज।
दुबक्या सूरज देव बी, छोड्या संदा काज॥
हाड़ कांप ग्या सी लगै, थर थर काँपै डील
सूरज जी बारै कढ़ो, दे द्यो थोड़ी ढील॥
पड्यो कोहडो जोर सूँ, होर्यो धुआं धपाड़।
सूझै कौनी आँख सूं, देखूँ आंख्या फाड़॥
ओढे धोळी बखतरी, ऊभा छै जी रूँख।
ताल तळैया जम ग्या, लागै पाणी सूख॥
लगी जोर सूं कपकपी, पूस माह कै मांय
होरी तापै तापणा, रूखौ सूखौ खाय॥
माँ बाप नै छोड़ कै, बेटो गयो बिदेस।
घर में रेवै लाडली, चंता करै हमेस॥
बातां सूं मोती झरै, सबसूं छै अनमोल।
संदा घर की लाड़ली, मीठा बोलै बोल॥
बेटी घूमै आंगणै, गूंज्यौ घर संगीत
ऊंकी तुतळी बात सूं, बिखर्या जाणै गीत॥