तउँ वीसहथि वीरोळि, तइँ वीसहथि वीरोळियइ।

भावठि भामइ तू तणइ, हिज्यउँ सु काँई हिगोळि॥

कवि मंगलाचरण में शक्ति की वंदना करता हुआ कहता है- हे बीस भुजाओं वाली देवी! तू ही(असुरों का) मर्दन करती है। तूने ही बीस हाथों वाले (रावण) का मर्दन किया था (अर्थात् तेरी अनुकंपा से दुर्जेय रावण पराभूत हुआ था)। हे देवी! हे हिंगलाज! तेरी इच्छा के बिना क्या होता है? अर्थात तेरे कृपा प्रसाद के बिना कुछ भी संभव नही है।

स्रोत
  • पोथी : अचलदास खीची री वचनिका ,
  • सिरजक : शिवदास गाडण ,
  • संपादक : शम्भूसिंह मनोहर ,
  • प्रकाशक : राजस्थान प्राच्यविधा प्रतिष्ठान, जोधपुर
जुड़्योड़ा विसै