सुण कनेर है बावळा, फूल्यो भरम फिरै।
गुण बिन कोय न आदरै, बिरथा रंग भरै॥
भल कनेर फूलै कितो, गुण बिन मान न लेय।
कांटां भरे गुलाब नै, सारा आदर देय॥
कोयल तै खोटी करी, पंचम सुर आलाप।
कळी जिसो कोमल हियो, तीखो इण रो ताप॥
बस कर कोयल बावळी, बिरथा कूक मरै।
आ मंडळी कागां तणी, ‘कांकां’ सबद करै॥
सुण हरियाळा रूंखड़ा, पंछियां बासो देह।
आगै पतझड़ आवसी, डांखळ रह जासेह॥
लफण झकोळै लाड में, हालै हिल्लोळांह।
रूंख जड़्यां नद खोळसी, कर कर किल्लोळांह॥
चौमासै में चार दिन, छीलर भरै गुमान।
ऊनाळो आयां पछै, देखां थारी सान॥
छीलर आवै छोळ में, डेडर डरड़ातांह।
सागर जीव न ऊझळै, अरबां अरड़ातांह॥
भंवरा मद में झूम मत, समझ बूझ रस लेह।
ओ वन कांटकंटाळियो, भूल बिंधासी देह॥
भंवरा तूं रीझ्यो भलो, देख रूप रंग लाल।
अै कागद रा फूल है, पड़सी फीका काल॥