जेठ मास की तपण सूं, झुळसी धरती माय।
ताती लू का बायरा, सबने ही तड़पाय॥
गरज गरज डरपा रह्या, काळा काळा मेघ।
गरजे जै बरस्या कदै, यो छै यांको भेद॥
घणो गजब को तावड़ो, तन मन नै झुळसाय।
छाँव मलै जद रूँखकी, तन मन साता पाय॥