कर्म उदें सुं उदें भाव होय, ते तों भाव जीव छें सोय।
कर्म उपसमीयां उपसम भाव, ते उपसम भाव जीव इण न्याव॥
भावार्थ : कर्म के उदय से उदय-भाव होता है, वह भाव जीव है। कर्म के उपशान्त होने से उपशम-भाव होता है। इस न्याय से वह उपशम भाव जीव है।