साइं सारदा मनि सँवरि, बाँधउँ ग्रंथ अपार।
सुरति राखउँ अचळ कउ, खउँदालिम्म सिकार॥
माँ शारदा का मन ही मन स्मरण कर मैं इस अतुल (कीर्तिशाली) ग्रंथ की रचना करता हूँ, तथा (काव्य के चरित्रनायक) वीर अचलदास के स्वरूप को हृदय में धारण करता हूँ, जो बादशाह के आक्रमण का शिकार हुआ।