पीपा विधवा स्त्री, ज्यों गरभ रहे पछताय।

त्यों पापी को पाप अन्त, घणौ घणौ कलपाय॥

स्रोत
  • पोथी : राजर्षि संत पीपाजी ,
  • सिरजक : संत पीपाजी ,
  • संपादक : ललित शर्मा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम