पीपा पारस परसताँ, लोहा कंचन होई।

सिध के कांठे बैसताँ, साधिक भी सिद्ध होई॥

स्रोत
  • पोथी : राजर्षि संत पीपाजी ,
  • सिरजक : संत पीपाजी ,
  • संपादक : ललित शर्मा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम