कागद कोरौ बांच के, जाण्यौ मन रो हाल।

हिरदै में उमड़ी घटा, घटा धिर्‌यौ भूंचाळ‌॥

नैणां में सावण बस्यौ, बरसै निस दिन नीर।

सपनां रो जाग्यौ हियौ, जगी आस री पीर॥

बाट थकी आंख्यां दुखी, जुग बीत्या तप आंच।

कद तक झळ में बाळसी, बात बात पी सांच॥

काग उडाती धण फिरै, हुया सुगन सै झूठ।

बादळिया पाछा मुड्या, सूनी च्यारूं कूंट॥

लू’सी लपकै झल अठै, हिवड़ै लागी त्रास।

तिरस्यौ मन कद धापसी, बीं दिन री है आस॥

प्राण पपैया बोल मत, कुण कुण सी या कूक।

मन बसियौ भी नां सुणै, हियै बसैड़ी हूक॥

कोरै कागद पर मंड्या, आंसूड़ा दो च्यार।

गीली आंख्यां बांचसी, दुख सींच्या उद्गार॥

आखर तो छिपिया पड़्या, भावां प्रकट्या बोल।

प्यार इसौ इतिहास रो, बोल्यौ भी अणबोल॥

जाणण हाळौ जागसी, इण पाती रो भाव।

हियै चांनणै उघड़ै, कागद छिप्यौ उछाव॥

तन री माटी में बसी, रसिया थारी प्रीत।

मन री पोथी में लिख्या, अे अणगिणीया गीत॥

थे आवौ तो बांचल्यौ, इण गीतां रो चाव।

पलकां ओट लगाय के, करल्यौ प्रीत निभाव॥

स्रोत
  • पोथी : मोती-मणिया ,
  • सिरजक : धनंजय वर्मा ,
  • संपादक : कृष्ण बिहारी सहल ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन
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