रहंट फरै, चरखौ फरै, पण फरवा में फेर।

हेक वाड़ हर्‌यौ करै, हिक छूंतां रा ढेर‌॥1॥

वाल्हा विचै विरोध जो, करै फूंकर्‌यां चाड़।

वां सूं तो भाठा भला, रुप नै मेटै राड़‌॥2॥

भावै जो भुगताय, दूजा दुख दीजै सभी।

खोळा सूं खिसकाय, मत दीजै मातेसरी॥3॥

स्रोत
  • पोथी : प्राचीन राजस्थानी काव्य ,
  • सिरजक : चतुरसिंह ‘महाराज’ ,
  • संपादक : मनोहर शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
जुड़्योड़ा विसै