नार मिलै तो नीर में, सायर मांय समाय।

नर न्हावै तो नीर में, जोत समावै जाय॥

स्रोत
  • पोथी : गंगालहरी ,
  • सिरजक : बांकीदास आसिया ,
  • प्रकाशक : राजस्थान राज्य प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर (राज.)