बिजळी खरचो मत विरथ, राखो पाणी सुद्ध।

नीं’तर लड़णो पड़ सकै, इण रै खातिर जुद्ध।।

पाणी सारू हो रह्या, पाणी-पाणी लोग।

पाणी सूं पा सकां, पाणी रो संजोग।।

डीजल भाव डरावता, पत छोड़ी पिट्रोल।

साइकिल थामो मानखां, समझ बखत रो मोल।।

बिरवा रोपो छांव रा, रूंख करो तैयार।

नीं’तर मिलसी जगत नै, कैयां सुखद बयार।।

जळ बीजळ अर रूंखड़ा, जीवण रा आधार।

यांनै अेरण सूं सुखी, पीढ़्यां तक संसार।।

बिरवो दादो रोपसी, पूत बैठसी छांव।

मीठा फळ पोता चखै, सुरग बणेला गांव।।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : कैलाश मंडेला
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