मायड़ भासा रै बिनां मिनख जमारोपूण।

निज बोली नीं बोलणी कैड़ी मिनखाजूण॥

जीभ अडाणी मेलणी-दूजी बोली बोल।

मायड़ बिन मुगती कठै तीनू लोका डोल॥

अैकठ चावै मानखां, खुदरी बोली बोल।

दूजी बोली बोलनै-क्यूं व्है डांवा डोल॥

मायड़ बोली बोलता बैरी बणता सैण।

भासा राजस्थान री, इमरत मीठा बैण॥

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : बी. एल. माली ‘अशांत’ ,
  • संपादक : श्याम महर्षि
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