दुनिया में दिन चार है, करले आछा काम।

नर जावे प्रभु पास में, रह जावे बस नाम।।

जस लीजे जीवड़ा, जग में जितरे वास।

कुण जाणे कद खूटजा, गिणी चुणी है सांस।।

कठपुतली बण मानवी, साजे सगळा साज।

खट सूं पाछी खेंचले, डोर जगत सिरताज।।

कुण सो वो देसड़ो, कुण सी है वा सींव।

कुण जाणे जावे कठे, जावण वाळो जीव।।

न्यारी न्यारी होय ने, नदिया बहती जाय।

छेवट जावे एक ही, समंदर माह समाय।।

जग बादल री गोद सूं, छूटे जीवण बूंद।

सीप तणे उण सुरग में, ओपे आसन रूंद।।

जो आवे है जगत में, जावे निश्चै जाण।

धरती माथे चार दिन, मिनख हुवे महमान।।

कुण वांचे अब पोथियां, कुण लेवे सदग्यान।

वाट गहे लाइब्रेरियां, आवे कुण इन्सान।।

कोड संग घर रेत रा, थप थप थापेह।

टुक टुक जोतां टीवियां, टाबर कद धापेह।।

कठे गई लुकमीचणी, पकड़ापाटी खेल।

सांग करे फिलमातणा, बाळकिया बिगड़ेल।।

ढाकणिया में ढोकळो, कुण बोले कर गैर।

बालहिया में बळ गई, ट्विंकल ट्विंकल टैर।।

कठे करे किलकारियां, टाबरियां री टोळ।

कठे गयो वो बालपण, कठे मजाकां रोळ।।

कुणी हुंकारो आज दे, बोले है कुण वात।

उळ्झ्या घर संसार में, सगळा ही दिनरात।।

सूना चोरा चोंतरा, हुई हथाया सून।

टीवी साम्हे टकटकी, बांध धारिया मून।।

किण सूं मतलब है किने, सब खुद में ही लीन।

खुद रो घर सरवर बण्यो, मानुस जाणे मीन।।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : हिम्मत सिंह उज्जवल ,
  • संपादक : डॉ. भगवतीलाल व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थान साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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