धरती स्यूं क्यूं धापगी, आभो हुयो उदास।

काळी-पीळी बादली, भावी री आस॥

साड गयो सावण गयो, भादूड़ो आसोज।

च्यारूं कूंटा फिर लिया, कठै मिलै नीं खोज॥

मरुधर तेरी देह पर, दूरभख काडया दांत।

घर-घर डर बायर्‌यो, जीवांलां किण भांत॥

रोही हुई डरावणी, खावण आवै धूड़।

धोरो पसर्‌यो भूख रो,लुकग्या सगळा खूड़॥

हीराकी नीं सुगन री, धरती धोळी धप्प।

मिनखा आंख्यां फाटगी, जीवण होग्यो ठप्प॥

डांगर होर्‌या बावळा, दीसै सगळा हाड।

रोही में रुकता फिरै, काती देसी काड॥

दारु पीता बे उतरा, दाणा स्यूं मोहताज।

टूम नहीं टाकी नहीं, नीवडरयो है नाज॥

टाबर मांगै टेम सिर,रोटी राबड़ रोज।

हाटां में घाटा पड़या, खाली होगी गोज॥

नर बतळावै नार स्यूं, काळ कुराणो धाय।

नारी बोली कंत है, काळ मौत रो बाय॥

मंत्रीजी राजी घणा, सत्ता नेता भोत।

अब तक जीवण बेचता, अब बेचांला मौत॥

डांगर मरै तो क्यूं डरां, डाँगर कोनी बोट।

बोट मरै तो मानल्यो, होसी म्हारो खोट॥

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : करणीदान बारहठ ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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