कूंजा ज्यों कुरल्या करै, बिरही जणा को जीव।

पीपा आगि बुझ सके, जब लग मिले पीव॥

स्रोत
  • पोथी : राजर्षि संत पीपाजी ,
  • सिरजक : संत पीपाजी ,
  • संपादक : ललित शर्मा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम