कविता सुरसत साधना, अलख ब्रह्म रौ भान॥

संतां सारूं सुमरणी, गुणिजन सारूं ग्यान॥१॥

चमत्कार नहं चुतर रौ, सिद्धाई नहं संत।

कविता उणरी खोज है, जिणरौ आदि अंत॥२॥

कविता उर मझ आस्था, नेहीजन मझ नेह॥

कंथा-कांमण कामझळ, मरुमन सारूं मेह॥३॥

कविता मुरली कान्ह री, राधा रस रळियांह।

अपणायत रा ओळभा, अवळू बीछड़ियांह॥४॥

कविता पीड़ प्रसूति री, सिरजत सो हि सहंद।

उपड़त अंतस वेदना, उपजत उर आणंद॥५॥

कविता नहं रंजन करत, नहं उपदेश कथंत।

जूंझत जूणी-जंग में, भोगत सो भाखंत॥६॥

कविता नीं कोतक कुबध, नीं बुधिजन वरणाव।

चौकस चख चाँनणौ, ऊँडै अंतस स्राव॥७॥

कविता इतियासां तणी, गाथां रासां गल्ल।

परतख करै प्रसंग सै, आँख्यां खुलै असल्ल॥८॥

खांच खरी खळकाय दै, कविता करै घात।

खुरंट खोतरै पैल तो, फिर औखद री बात॥९॥

कविता वीरां अमिय रस, कायर डील चभीड़।

विरही मन री वेदना, पीड़ित जन री पीड़॥१०॥

कविता हाकल हेरियां, सूता सिंह जगाय।

मिनख जिका मुर्दायग्या, जिद कर देय जिवाय॥११॥

कविता वठै वापरै, जबराणी ह्वै जठ्ठ।

कविता कँवळी कूँपळी, कविजन करड़ा लठ्ठ॥१२॥

पुहुप पान ह्वै फूठरा, पवन सुगंध परस्स।

कविता कलरव जद करै, साखां होय सरस्स॥१३॥

छंद मातरा गति सहज, अलंकार रस कत्थ।

ह्रिदै हुवै संवेदना, (तो) कविता आवै हत्थ॥१४॥

कुलत कुसंगत कामझळ, मछर मांदगी मेह।

कवित स्रजण निंदा स्रवण, सुवै सूवण देह॥१५॥

कविता अंतस री व्यथा, कथा साच कथ देय।

भण सुण जो जिसड़ौ गुणै, विसड़ौ ग्यांन ग्रहेय॥१६॥

कविता हिवड़ै सूं कथां, मथां मन रै मांय।

रचां रूड़ै आखरां, कूंतां‌ गुणिजन पाय॥१७॥

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : नवल जोशी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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