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साइट: परिचय
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अंजस सोशल मीडिया
ज्यों दिव जरै पतंगड़ा
संत पीपाजी
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ज्यों
दिव
जरै
पतंगड़ा,
त्यों
नर
माया
मांह।
पीपा
माया
मार
में,
कोइऊ
जीवित
नांह॥
स्रोत
पोथी
: राजर्षि संत पीपाजी
,
सिरजक
: संत पीपाजी
,
संपादक
: ललित शर्मा
,
प्रकाशक
: राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर
,
संस्करण
: प्रथम