जावै जवानी जाग, कदै तक सूतौ रैला,

आव लगादै आग, कदै तक सूतौ रैला।

कैई पलटिया राज मुलक में जठै जवानी,

क्यूं लगावै दाग, कदै तक सूतौ रैला।

लूट मंडी थूं देख अठै रोवै करमां नै,

पलटै क्यूं नी भाग, कदै तक सूतौ रैला।

रोयां यूं रुजगार डिगरियां देला कोनी,

क्यूं उडावै काग, कदै तक सूतौ रैला।

हेलौ-हॉय थूं छोड़ गेलिया गावै क्यूं नी,

फागणियै रौ फाग, कदै तक सूतौ रैला।

चढ़जा आभै सामी छकाती जाय जमादै,

धरती माथै धाक, कदै तक सूतौ रैला।

पटक परौ सोने रो सूरज लाय पगां में,

लै लै थारी लाग, कदै तक सूतौ रैला।

घोड़ां नै नी घास गदैड़ा चरै काळ में,

काजू साथै दाख, कदै तक सूतौ रैला।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : अमरसिंह राजपुरोहित ,
  • संपादक : डॉ. भगवतीलाल व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थान साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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