हसां तो मोती चुगै, बुगला गार तलाई।

हरिजन हरि सूं यूं मिल्या, ज्यूं जल में रस भाई॥

स्रोत
  • पोथी : संत सुधा सार ,
  • सिरजक : लालनाथ जी ,
  • प्रकाशक : मार्तण्ड उपाध्याय, मंत्री, सस्ता साहित्य मंडल,नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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