जपइ तुहाळइ काळि, डहडहिया डमरू तणा।
छाडे असुर सु आळि, तइ वा भारथि वीसहथि॥
कवि देवी की स्तुति करते हुए कहता है कि तेरे कालरूप डमरू की डिम्-डिम् ध्वनि सुनते ही सब (भय-त्रस्त हो) तेरी आराधना करने लगते हैं। हे बीस भुजाओं वाली! युद्ध में तेरा सामना होते ही असुर लड़ना छोड़ भाग खड़े होते हैं।