जहाँ पड़दा तही पाप, बिण पड़दौ पापै नही।

जहाँ हरि आपै आप, पीपा तहाँ पड़दौं किसौ॥

स्रोत
  • पोथी : राजर्षि संत पीपाजी ,
  • सिरजक : संत पीपाजी ,
  • संपादक : ललित शर्मा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम