ऊंच जनम हरि संग रो, रती न राख्यो गोळ।
मुंह लाग्यो बाजै घणो, जा रै संखडफोळ॥
ऊंच जनम बिरथा हुयो, बिरथा बण्यो सुडोळ।
जणै जणै मुंह लागतां, बाज्यो सखडफोळ॥
भळ बूठ्यो तूं जगत में, करी जळजळाकार।
चातक तिस्सो जे मरै, जळहर तूं धिक्कार॥
बंजड़ टीबा ताल थे, करिया एकूंकार।
प्यारो चातक पच मरै, जळहर तूं धिक्कार॥
कीली न काठी करे, मत ढीली रह जाय।
जोड़ जुगत सूं कीलिया, ठेठ जाय खड़काय॥
स्याणो तूं सालोतरी, आयो इण दिस आज।
तीखा तुरी कठै अठै, लमकन्नां रै राज॥
चौकीदार न ऊंघ अब, जागर कर चोफेर।
घर में पाड़ लगावतां, चोर न करसी देर॥
आस पास जागर करी, रह्यो खूब हुंसियार।
चोरां घर चोपट कियो, चोखो चोकीदार॥
उठी जाण उतराध सूं, छोड़ न बिरछां गोट।
मोर रूळायर मारसी, ओ आंधी रो गोट॥
चकवी मत ना सोच कर, गई घणी सी रात।
दोय घड़ी रो झटपटो, पीव मिळण परभात॥