हिवें पाप आवाना बारणा, पहली कहूं छुं तांम।

ते जथातथ परगट करूं, ते सुणों राखें चित ठांम॥

अब मैं पहले आश्रवों का पाप आने के द्वारों का यथातथ्य वर्णन करता हूं। उसे एकाग्रचित से सुनो।

स्रोत
  • पोथी : आचार्य भिक्षु तत्त्व साहित्य ,
  • सिरजक : आचार्य भिक्षु ,
  • संपादक : आचार्य महाश्रमण ,
  • प्रकाशक : जैन विश्व भारती प्रकाशन
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