‘हेली! ईं जीवण झाड़ी में, जितणा लाग्या बेर अठै।

सबनै झड़णो ईं पड़ियो है, इक दिन देर—सबेर॥

इण में झाड़ी भी के करले, सह ज्यावै सब चुप रैकी।

बकरै की मां आखिर कद तक, खैर मनावै बकरै की॥

है नेम प्रकरती स्याणी, जलम धरा पर ले जो प्राणी।

इक दिन होसी ढेर अठै, हेली! ईं जीवण झाड़ी में

जातणा लाग्या बेर अठै॥

पाको टूटयां फळ झाड़ी कै, पीड़ नहीं कुछ खास हुवै।

है नीति को दोस समझ यूं, झाड़ी नहीं उदास हुवै॥

पण, मर लेवै झाड़ी बीं दिन, काचो बेर तोड़कै जीं दिन, जावै कोई गेर अठै।

हेली! ईं जीवण झाड़ी में, जितणा लाग्या बेर अठै॥’

स्रोत
  • पोथी : सोरठां री सौरम ,
  • सिरजक : ताऊ शेखावटी
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