गोप्यां राखण प्रीत, किरसण रो सुमरण किसो।

चक्रधारी री चीत, चित में छाई चंद्रसी॥

रग रग फड़कै रोस में, रण मद पूरापूर।

हित धणियां हिरदै हरी, सीस समप्पै सूर॥

कायर मोत किरोड़, सूरां सिरजी एक बस।

माथै जस रो मोड़, जोग उणां रो जीवणो॥

भड़ हीणी मत भाख, अणभाखी आवै किती।

नस नै ऊंची राख, दोय दिनां रो जीवणो॥

धरती कह धणियांह, सुणो अरज सांभळो।

आई खग इणियांह, कोरी बातां रहुं कियां॥

दिल रो अत दातार, दीनां हित दूणो लफै।

रण में जूझणहार, इल पर कथ राखै अमर॥

करस्यां काईं राम, होणी मत धार हियै।

राम सारै काम, माड़ा मिनखां चन्द्रसी॥

तातै रतर नहावती, लाखां सिरां लपेट।

बासी मांस छुनाय खग, पापण पूरै पेट॥

आगै रण में आविया, जूझ्या किता जुझार।

आजकलै रणबंकड़ा, मरै बैंत रै भार॥

भायां नंह अब भेळ, नीचां नै नेड़ा करै।

मोथां ठाकर मेळ, चालै दोरो चन्द्रसी॥

स्रोत
  • पोथी : बाळसाद ,
  • सिरजक : चन्द्रसिंह बिरकाळी ,
  • प्रकाशक : चांद जळेरी प्रकासन, जयपुर
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