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घंण ज्यौं बूठा बांण क
मेहा गोदारा
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घंण
ज्यौं
बूठा
बांण
क,
रांणौ
रावंण
मारयौ।
रावंण
मार्
यो
परहंस
सार्
यो,
लंक
लिवी
मुंह
भांने॥
स्रोत
पोथी
: मेहोजी कृत रामायण
,
सिरजक
: मेहा गोदारा
,
संपादक
: हीरालाल माहेश्वरी
,
प्रकाशक
: सत् साहित्य प्रकाशन, कलकत्ता-700007
,
संस्करण
: प्रथम