मीत मीत नै परखतां, मीत न लाध्यो अेक।
बैम बैरी नै खायगौ, हियै झांक तू देख॥
होड़ां होड़ी खेल में, तमगां री है राड़।
भायां नै क्यूँ नी दिखै, खेत खावती बाड़॥
हेत निभायौ भायलौ, जद तक हौ ब्योपार।
गांठ बांधली आज म्हैं, मतलब रौ संसार॥
राड़ मचावै तीसरा, थूं क्यूँ कूद्यौ यार।
टाट मांडनै बैठज्या, सहणी पड़सी मार॥
गुटबाजी रै चालतां, सिरजण रौ सुख धूळ।
मत बिसराऔ भायलां, मीत धरम रौ मूळ॥
अंतपंत नै अेक है, सगळां री सरकार।
मिनख-पुजारा बावळा, अेक आस करतार॥
नवा लिखारा सोच में, किणरौ देवै साथ।
अणबोल्या चाल्यां बगै, बिना जुपायां हाथ॥
किरसौ बावै खेत नै, मन में मोटी आस।
दाणा रुळग्या काळ में, डांगर तरसै घास॥
ठाट-बाट सूं राज कर, खूब उड़ा थूं माल।
बातां रा चाबुक भला, मोटी तेरी खाल॥
सतलखणा अै भायला, दिसाहीण कर जाय।
मीठा-मीठा बोल कर, भायां सूं लड़वाय॥
महानगर की गोरड़ी, गोरी चाम दिखाय।
आजादी की मोद में, ओळज बिकती जाय॥