धरती री गत निरखतां, आंख्यां हुवै उदास।
च्यारूं कानी विपद घणी, कै तड़फंता सांस॥
इमरत घट हिड़दै बसै, जाण सकै ना कोय।
जो जाणै सो आप ही, रैवै आप में खोय॥
वाणी में मिसरी बसै, इण में बसै जहर।
आ ही जोड़ै प्रीत सूं, आ ही ढहावै कहर॥
पाणी निरमळ तन करै, मळ-मळ धोया हाथ।
मन नैं धोया हर मिलै, मनड़ा साची बात॥
चाक चढी माटी फिरै, गरणाट्यां चढ ज्याय।
ग्यानबायरो क्यूं बणै, माटी में रळ जाय॥
आसावां रा आंगणा, हरियल-हरियल होय।
फिरत-घिरत री छांवळी, सुख सदा न होय॥
आभै उडती खेह भी, पोमीजै मन मांय।
माटी मिळसी अेक दिन, माटी में ही जाय॥
आप-आपरी स्यान में, सगळो मगन संसार।
पाक्यां घट कद याद करै, कुण हो चतर कुंभार॥
स्वारथ रा संसार में, मच री भागमभाग।
पाप गांठड़ी बंध चुकी, क्यूं सूतो निरभाग॥
रमता जोगी पावणा, अलख जगाई आय।
तन का डेरा छोडकर, छिण में जासी धाय॥
भूखै रो हरजस भजन, अत्र देवता अेक।
बाकी सगळा बानगी, धायोड़ां रा लेख॥
जात-पांत अर धरम सूं, क्यूं बांटीजै तूं।
प्राणी इण संसार में, सगळै बसै है तूं॥