डूँगर केरा वाहळा, ओछाँ-केरा नेह।

वहता वहइ उतावळा, छटक दिखावइ छेह॥

मालवणी कहती है -पहाड़ी नाले और ओछे (छोटे, निम्न स्तरीय ) पुरुषों का प्रेम दोनों एक समान होते है जो बहते समय तो बड़ी तेजी से बहते है पर तुरंत ही अंत दिखा देते हैं।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी भाषा और साहित्य ,
  • सिरजक : कवि कल्लोल ,
  • संपादक : डॉ. मोतीलाल मेनारिया
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