भाण नमे नित भगवती, नित सुर जापे नाम।

धिन देशाणां री धणी, धिन है देशाणों धाम॥

अवनी ऊपर आज, पाप बढ्यो परमेश्वरी।

भगता रे हित भाज, आय बचा तूं आवड़ा॥

पातां री प्रतिपाल, सांची मेहाई सगत।

राजे तूं रिछपाल, मढ़ देशाणें माहिने॥

काबां तणीं किलोळ, मढ़ लागे मनभावणों।

पेखी नह कोई प्रोळ, देवी देशाणें समो॥

पग मेल्हूं में पाग, शरणों ले तव शंकरी।

भला राखज्यो भाग, देवी देशाणें तणी॥

वन्दन तोहे बीसहथ, नमो तोहे सुरराय।

संकट मेटो सेवगां, सायर करनी साय॥

अम्बर घटा ज्युं गूज रही, करणी कोट रे मांय।

रमे रास जद सायरा, संग भैरव रमाय॥

शरणे राखो शंकरी, करणी सायर माय।

कर जोङुं मं करनला, चित्त मं ध्यान लगाय॥

सुणज्यो सेवक विनती, अम्बा सायर माय।

करो कृपा माँ करनला, तव सुत चरणां मांय॥

पैदल देबा परिक्रमा, आया भक्त अपार।

महक रियो मातेश्वरी, देशनोक दरबार॥

चमके ओरण चांद सो, करे भगत जयकार।

फैरी देतां याद करे, धजबंद मेहदुलार॥

दर्शन करनल देवसी, मनडे़ आस अपार।

करणी गोद बिठाय कर, करसी लाड दुलार॥

आवड़ तूं ही आस, शरणें में मामड़ सुता।

अंबा सुंण अरदास, माढ़ धरा री मावडी़॥

सगती कारज सेवगां, करणी बणज्यो काळ।

अरजी थांने अंबिका, बैरी ने झट बाळ॥

टाबर सुणतां टेर, आतुर आता अम्बिका।

बीसहथी मम बै़र, भूलो क्यूं थे भगवती॥

ओरण सु'रंगों अति, वसुधा धवळ विशेष।

करणीं थांरे कारणें, जबरो जांगळ देश॥

रक्षक थें ब्रम्हांड रा, वाहन निज वनराज।

आवो बेगा अंबिका, करण सफल सब काज॥

नमूं आज नौ रूप, सायर करणी साय।

इंदु गिगल आवज्यो, चावंड चाळकराय॥

सगती सहाय व्हे सदा, सजे मात सादूळ।

रक्षा राखण नित रहे, तव हाथां ति्रशूळ॥

शुभ्र कला मढ़ सोवणीं,नित करणी रो नाम।

किलकारी काबा करे, धिन देशाणां धाम॥

अटल भरोसे आपरे, है मांजी हिंदवाण।

रक्षक रिज्यो रातदिन, जाया थांरा जाणं॥

वर्णित वेदां देखियो, सुरगां तणो बखाण।

धर पर निरखण सांप्रत, देखो मढ़ देशाण॥

आज प्रगट भयी ईशरी, काटण सकळ कळेश।

सजियो राखे सिंह ने, आदि शक्ति इंद्रेश॥

रत्नुं वंश रूखाळ, भयहारण निज भक्तजन।

चारण वंश ऊजाळ, प्रकट भयी परमेश्वरी॥

कष्ट हरणं निज कविजनां, अरियां मारणं आप।

इंन्द्र इळा पर अवतरी, सेवग हरण संताप॥

इंन्द्र कहुं के आपसूं, म्हारे थे हिज महीप।

अंबा थांरे आसरे, कींकर तव कुलदीप॥

करणी कहूं कर जोड़कर, कर दीजिए मुझपर कृपा।

आसन करो मम कंठ पर,गाऊं तिहारा गुण सदा॥

सोहे खड़ग कर मैं तेरे, सिर लाल लोवड़ सोवणी।

नित रुप ना ना तूं करे, सुत कष्ट मेटण जोगणी॥

करबाल करणी धार कर, निज पुत्र की विपदा हरो।

सुण टेर अविलंब आवज्य, हुं दास करनल आपरो॥

अवलंब तिहारो आसर, कलु व्याधि तुम बिन कुण हरे।

कर शीश धर दे जे अंबिके, मझधार में तरणी तिरे॥

रहे ध्यान मन मैं बस तेरा, ना राह से कभी मैं हटूं।

बस एक ही अभिलाष है, नित नाम करणी का रटूं॥

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : कुलदीप सिंह इण्डाली ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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