नारी कोमल भावना, नारी निर्मल रूप।

महिशासुर मर्दन करै, अत्याचार बिरूद्ध।।

अंग प्रदर्शन की मची, भारत नारी होड।

मीठो ज़हर सराहती, अमरित संस्कृति छोड।।

अबला अब सबला बणो, यही समय की मांग।

खुद नै खुद समरथ करो, घुळी कुआ में भांग।।

मायड़ का ही दूध सूं, आन बान अर जोर।

क्यूं नारी नै मानता, दीन हीन कमजोर।।

सबला बण संघर्ष करो, अबला बण मत हार।

सगती को औतार बण, हे भारत की नार।।

कतरी सुन्दर सभ्यता, होवै जग पहचाण।

होतो कतरो देस में , नारी को सम्मान।।

जठै पुरुष निर्लज्ज हुवै, करता उलटा कर्म।

बहुत कठण को काम छै, नमबो नारी धर्म।।

अंग प्रदर्शन कर रही, बैठी स्वागत कक्ष।

शिशु पालण खातिर दिया, छा ईश्वर नै वक्ष।।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : जयसिंह आशावत
जुड़्योड़ा विसै