परख सकै तो परखलै, मिनखां रो कीं मोल!

मिनखपणै नै बावळा! तूं धन सूं मत तोल!!

मिनख बडो या धन बडो, जाण सकै तो जाण!

मिनख घणो दोरो मिलै, जगत जमारो छाण!!

माया रो अर मिनख रो अेक जाण मत मोल!

अफरो मत बण! मिनख सूं, मिनखपणै सूं बोल!!

कातर चुगता काल नित, बै इब नापै थान!

कद पलटै तक़दीर आ, जाणै बो भगवान!!

अैंठा ठीकर रगड़ता, हाथां में ले' राख!

उण हाथां सूं इब गिणै, रिपिया दस-दस लाख!!

भलमाणस! धन-माल रो, के अपसोच-गुमान?

इक छिण लागै बावळा! पलट जाय दिनमान!!

इतरायोड़ो गरब सूं मटक-मटक' मत चाल !

कुण जाणै हो'सी किस्या काल किणीं रा हाल??

मिनख हुवै, कूंतै-गिणै, करै मिनख रो मोल!

मिनखपणो नीं जको, अफरा बोलै बोल!!

मिनखपणो निज हाथ है, भाग्य हाथ भगवान!

तूं चावै इंसान बण, चावै बण शैतान!!

ख़ुदा बण्यो अकड़्यां फिरै, धन के आयो हाथ!

जासी खाली हाथ तूं, भूल मती औकात!!

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : राजेंद्र स्वर्णकार
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